सिंधु जल संधि: एकतरफा समझौता जिसने पाकिस्तान को भारत के पानी पर दी खुली छूट
सिंधु जल संधि भारत के हिस्से की प्रमुख नदियों को पाकिस्तान को सौंपने जैसा रहा। जानिए कैसे यह संधि पाकिस्तान के पक्ष में अधिक झुकी हुई थी।
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1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) हुई थी। इस ऐतिहासिक संधि को विश्व बैंक की मध्यस्थता में तैयार किया गया था, लेकिन इसके लागू होते ही विशेषज्ञों और रणनीतिकारों ने इसे भारत के लिए एकतरफा नुकसानदेह सौदा माना। इस लेख में हम विश्लेषण करेंगे कि कैसे इस संधि ने पाकिस्तान को जल संसाधनों पर भारत से कहीं अधिक लाभ पहुंचाया।
📜 सिंधु जल संधि का मुख्य प्रारूप
संधि के तहत छह नदियों को दो भागों में बांटा गया।
पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम और चिनाब — पाकिस्तान को सौंप दी गईं।
पूर्वी नदियाँ: रावी, ब्यास और सतलुज — भारत के पास रहीं।
कुल बहाव का अनुमानित वितरण:
पाकिस्तान को मिला: 80% से अधिक जल प्रवाह
भारत को मिला: केवल 20% जल प्रवाह
यह स्पष्ट करता है कि भारत को उसकी भौगोलिक सीमा में उत्पन्न नदियों से भी मात्र 20% पानी का उपयोग करने का अधिकार मिला।
💧 पाकिस्तान को कैसे मिला बड़ा फायदा
1. पश्चिमी नदियों का पूर्ण नियंत्रण
भारत से उत्पन्न होकर पाकिस्तान जाने वाली तीनों पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम और चिनाब — पर भारत को सिर्फ 'non-consumptive' उपयोग की अनुमति दी गई (जैसे पनबिजली, नौवहन आदि)। बांध या जल संग्रह जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों पर रोक लगाई गई।
2. जल भंडारण की सीमा
भारत केवल 3.6 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी ही रोक सकता है, जो उसकी क्षमता का एक छोटा अंश है। वहीं पाकिस्तान बिना किसी रोकटोक के इन नदियों का लगभग 135 MAF उपयोग कर सकता है।
3. विकास में रुकावट
भारत के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स (जैसे बगलीहार, किशनगंगा) पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार रोके गए। जिससे जम्मू-कश्मीर और हिमाचल जैसे राज्यों के ऊर्जा विकास को बड़ा झटका लगा।
4. भू-राजनीतिक दबाव
हर बार जब भारत ने कोई परियोजना बनाई, पाकिस्तान ने उसे विवादास्पद बना कर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में घसीटा। इससे न केवल समय की बर्बादी हुई, बल्कि भारत को रणनीतिक बढ़त भी गंवानी पड़ी।
📊 सिंधु समझौते के वास्तविक आंकड़े
कुल जल उपयोग:
भारत: लगभग 20%
पाकिस्तान: लगभग 80%
पश्चिमी नदियों पर अधिकार:
भारत: सीमित (केवल रन ऑफ द रिवर परियोजनाओं की अनुमति)
पाकिस्तान: पूर्ण नियंत्रण और उपयोग
जल भंडारण क्षमता:
भारत: 3.6 MAF (मिलियन एकड़ फीट)
पाकिस्तान: 135 MAF से अधिक
अंतरराष्ट्रीय समर्थन:
भारत: सीमित
पाकिस्तान: विश्व बैंक की खुली पक्षधरता
🔍 विशेषज्ञों की राय
शशांक (पूर्व विदेश सचिव):
“संधि में भारत ने उदारता दिखाई, लेकिन पाकिस्तान ने हर बार इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।”
एमएस मेहता (सुप्रीम कोर्ट वकील):
“अगर भारत चाहता, तो सिंधु समझौते को 1971 के बाद ही रिवाइज कर सकता था। पर हमने सदाशयता दिखाई, उन्होंने उसे कमजोरी समझा।”
🌐 बदलते परिप्रेक्ष्य में भारत की सोच
अब जबकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और पहलगाम जैसे आतंकी हमलों में शामिल रहा है, भारत सरकार यह सोच रही है कि क्या इस संधि का वर्तमान स्वरूप राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है या नहीं।
J&K को जल ऊर्जा का हब बनाने का प्रस्ताव तैयार किया जा चुका है।
3200 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं।
सिंधु, चिनाब, झेलम पर बड़े बांध, जलाशय और नहरें बनाने की योजना पर कार्य शुरू हो चुका है।
❓FAQs (प्रश्न-उत्तर)
Q1: क्या सिंधु जल संधि भारत के लिए असमान रही?
हां, संधि ने भारत को केवल 20% पानी का अधिकार दिया, जबकि 80% पाकिस्तान को मिला।
Q2: क्या भारत सिंधु नदियों का पूरा उपयोग कर सकता है?
संधि के अनुसार नहीं, लेकिन अब भारत इसपर पुनर्विचार कर रहा है।
Q3: क्या पाकिस्तान ने कभी संधि का उल्लंघन किया है?
पाकिस्तान ने भले ही सीधे उल्लंघन न किया हो, लेकिन भारत की परियोजनाओं में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न की हैं।
Q4: भारत ने अब तक सिंधु समझौते को क्यों नहीं रद्द किया?
भारत ने अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन करने की नीति अपनाई है, लेकिन अब आत्मरक्षा और रणनीतिक हितों के तहत विकल्प खुले हैं।
Q5: क्या भारत सिंधु जल समझौता रद्द कर सकता है?
हां, यदि पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तो भारत इस संधि को समाप्त करने का अधिकार रखता है।
निष्कर्ष: भारत की जल-संप्रभुता का पुनर्जागरण
सिंधु जल समझौता भारत की रणनीतिक परिपक्वता का प्रतीक था, पर आज वह रणनीतिक बोझ बन चुका है। ऐसे समय में जब पाकिस्तान बार-बार भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है, जल जैसे प्राकृतिक संसाधन पर नियंत्रण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
"पानी पर हक सिर्फ नदी का नहीं होता, बल्कि उस राष्ट्र का होता है जो उसकी धारा को पोषित करता है।"